एक बूढ़े नौकर की आत्मकथा हिंदी निबंध Autobiography of Old Servant Essay in Hindi

Autobiography of Old Servant Essay in Hindi: जी हाँ, मैं इस घर का बहुत पुराना नौकर हूँ। जब मैंने इस घर में प्रवेश किया था, तब मेरे ये मालिक रामदास सेठ बहुत छोटे थे। अपने जीवन के पूरे चालीस वसंत मैंने यही काम करते हुए गुजारे और आज मेरा बुढ़ापा भी यहीं खाँस रहा है।

एक बूढ़े नौकर की आत्मकथा हिंदी निबंध - Autobiography of Old Servant Essay in Hindi

एक बूढ़े नौकर की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of Old Servant Essay in Hindi

बचपन और नौकरी

बचपन में ही माँ की मौत और पिता के शराबीपन ने मेरे जीवन में जहर घोल दिया था। पिताजी की कुछ कमाई शराब में खर्च हो जाती और कुछ महाजनों का कर्ज चुकाने में । इसलिए बचपन से ही मुझे नौकरी करनी पड़ी। दर दर की ठोकरे खाता-खाता एक दिन मैं इस देहली तक आया। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरा बचपन बीता और कब जवानी आई। सारा वक्त काम की चक्की में पिसता रहता था, किंतु इस घर की मालकिन ने मुझे ऐसा स्नेह दिया कि मुझे लगा जैसी मेरी माँ मुझे फिर से मिल गई हो।

एक विशेष प्रसंग

एक बार दूसरे नौकर ने मुझे निकलवा देने के लिए मालिक की जेब से पाँच सौ रुपए चुरा लिए और चोरी का इल्जाम मुझ पर लगाया गया। मालिक ने मुझे डाँट-फटकारकर घर से निकाल दिया। पर मालकिन को मेरी ईमानदारी पर पूरा भरोसा था । बड़ी खूबी से उन्होंने असली चोर का पता लगा लिया। मालिक की भी शंका दूर हो गई और वे खुद मुझे घर ले आए। तब से मेरी जिंदगी इस परिवार में ऐसी घुलमिल गई है कि अब मैं यह नौकरी छोड़कर और कहीं जाना नहीं चाहता।

सेवा

मैं कई सालों से घर का सारा काम सँभाल रहा हूँ। मैं रसोई बनाता हूँ, बच्चों को खिलाता-पिलाता हूँ और छोटे-मोटे तमाम काम खुशी से करता हूँ । मौका पड़ने पर जूते साफ करने या बच्चों का मैला धोने से भी मैंने इनकार नहीं किया। बड़े बाबूजी की बीटिया सोनल की भोली-भाली मुसकान देखकर मैं फूला नहीं समाता। उसकी कोई भी बात टाल देना मेरे लिए संभव नहीं होता। पहले जैसी शक्ति और स्फूर्ति तो अब मेरे इस तन में नहीं रही, फिर भी मैं अपने सभी काम धीरे-धीरे और बारी-बारी से करता हूँ । मेरे काम से मेरे मालिक संतुष्ट हैं । मुझसे कभी कोई भूल भी हो जाती है तो वे मुझसे कुछ नहीं कहते।

जीवन के अनुभव

सचमुच, मैंने पूरी ईमानदारी से इस घर की सेवा की है। इस घर में समय के कितने ही उलट-फेर मैंने देखे हैं। जब बूढ़े मालिक और मालकिन बद्रीनाथ जाते हुए एक दुर्घटना के शिकार हुए तब मैंने उनकी बहुत सेवा की थी।

शेष जीवन

आज छोटे मालिक ने घर में लक्ष्मी का ढेर लगा दिया है। उनकी कृपा से मेरा बड़ा बेटा कॉलेज में पढ़ रहा है। मुझे अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है। बस, यही इच्छा है कि मरते दम तक अपने मालिक की सेवा करता रहूँ। उनकी सेवा में ही जवानी बीती है और यह बुढ़ापा भी उनकी सेवा में ही सार्थक बने।

Leave a Comment