Autobiography of Earthquake Victim Essay in Hindi: बचपन से ही मैं धरती को माता मानता हूँ । सचमुच, अपने अन्न, जल, फल, खनिज आदि से यह धरती माता की तरह ही हमारा लालन-पालन करती है। मैं रोज सुबह उठकर सबसे पहले धरती को प्रणाम करता था। परंतु ३० सितंबर, १९९३ को पता नहीं क्यों, धरती माता मुझसे एकाएक नाराज हो गई।
एक भूकंप-पीड़ित की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of Earthquake Victim Essay in Hindi
जीवन-परिचय
मेरा जन्म महाराष्ट्र के लातूर जिले के किल्लारी गाँव में हुआ था। मेरा परिवार एक खाते-पीते किसान का परिवार था। घर में सुशील और मेहनती होनहार बेटे थे। हीरा-मोती नामक दो बैल और एक दुधारु भैंस थी। मैं ज्यादा पढ़-लिख नहीं सका था, परंतु घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों को निभाने में कसर नहीं रखता था। मैं अपने बेटों को ऊँची शिक्षा दिलाने का सपना देख रहा था।
वह भयानक रात
सितंबर १९९३ का अंतिम सप्ताह था। गणेशोत्सव चल रहा था। वातावरण में सर्वत्र गणपति की महिमा गूंज रही थी। शाम को मुहल्ले में गणपति की पूजा हुई थी। हम लोग गणपति-विसर्जन करके लौटे थे। मैं बहुत थक गया था। घर में काफी चहल-पहल थी। इसलिए मैं अपने खेतवाले कमरे में जाकर सो गया था।
होश आने पर क्या देखा?
रात के लगभग तीन बजे अचानक मेरी आँख खुल गई। मैंने धरती में कँपन महसूस किया। लोगों की चिल्लाहट भी कानों में आ रही थी। मैं बिस्तर से उठ ही रहा था कि भूकंप का एक तेज झटका आया। इसीके साथ कमरे की छत धड़ाम से मुझ पर गिरी। फिर मुझे कुछ याद न रहा।
गाँव-घर की दुर्दशा
होश आने पर मैंने खुद को एक तंबू में लेटा हुआ पाया। मेरे शरीर पर जगह-जगह पट्टियाँ बँधी हुई थीं । मेरे आसपास दर्जनों लोग इसी तरह लेटे हुए थे। वे कराह रहे थे। कई डॉक्टर भी वहाँ थे। मैंने एक डॉक्टर से कुछ पूछना चाहा पर उसने शांत रहने का इशारा किया। मैंने अपने चारों ओर बदहाली के दर्दनाक दृश्य देखे । भूकंप की विनाशलीला में मेरा परिवार बलि चढ़ गया था। एक मैं ही अभागा जीवित बचा था। सारे गाँव की यही करुण कहानी थी।
उपसंहार
कई महीनों के बाद मैं शारीरिक रूप से ठीक हो गया। परंतु मन के घाव ज्यों-के-त्यों बने रहे। यह उजड़ा हुआ गाँव फिर बस जाएगा, परंतु मेरा उजड़ा संसार क्या फिर से बस सकता है? काश, मैं भी इस धरती में समा गया होता !