Autobiography of Orphaned Boy Essay in Hindi: बाबूजी, आप मुझसे मेरा परिचय जानना चाहते हैं, लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं आपको क्या बताऊँ ? मैं एक अनाथ बालक हूँ। इस दुनिया में अपना कहने लायक मेरा कोई नहीं है। बस यह धरती ही मेरी माँ है और आकाश ही मेरा पिता है।
एक अनाथ बालक की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of Orphaned Boy Essay in Hindi
जन्म और बचपन
मेरा जन्म आज से तेरह-चौदह साल पहले इसी शहर की एक झोपड़पट्टी में हुआ था। मैं नहीं जानता कि मेरे माँ-बाप कौन है । मैंने उन्हें कभी नहीं देखा । क्या मालूम वे इस दुनिया में हैं भी या नहीं ! मेरा तो शैशव और बचपन एक अनाथालय में ही बीता । वहाँ मेरे बोल फूटे और वहाँ ही धूल में लोट-पोटकर मैंने चलना सीखा। वहाँ के स्कूल में मैंने थोड़ा-बहुत पढ़ना-लिखना सीखा।
अनाथालय से भागना
जीवन का पहला दशक तो वहाँ किसी तरह बीत गया, लेकिन बाद में मेरा मन ऊबने लगा। उस दया और याचना की जिंदगी से मुझे नफरत होने लगी। कभी किसी सेठ की ओर से खाना दिया जाता, तो कभी बाहर गाना-बजाना करके अनाज और पैसे माँग लाने पड़ते । मुझे लगा-छि:, यह भी कोई जिंदगी है ! ऐसे जीवन से तो मरना अच्छा । एक दिन मौका देखकर मैं भिखमँगों की टोली में से भाग निकला। मैंने सोचा था कि अब मुझे कोई अनाथ नहीं कहेगा!
नौकरी के कटु अनुभव
बहार की दुनिया में आकर मैं काम की तलाश में भटकने लगा। कोई पूछता-तुम्हारे माँ-बाप कौन हैं? कोई पूछता-तुम्हारा घर कहाँ है? कोई कहता की किसी की जमानत दिलाओ। मैं क्या उत्तर देता? एक प्याऊ पर पानी पिलानेवाले पंडित ने मुझसे हमदर्दी बताई। उसी की सिफारिश पर एक दिन एक सेठ को मुझ पर दया आ गई। उन्होंने अपने छोटे लड़के को स्कूल लाने ले जाने के लिए मुझे रख लिया। लड़का रास्ते में बड़ी शरारत करता था। एक रोज तेजी से आती हुई एक साइकिल से वह टकरा गया। उसे जरा-सी चोट आई और उसी दिन मेरी छुट्टी हो गई । मेरी जिंदगी फिर से बेसहारा हो गई।
चोरी का आक्षेप
थोड़े दिनों के बाद मुझे एक व्यापारी की पीढ़ी में नौकरी मिल गई । वहाँ मैं चाय-पान लाने का तथा दूसरे छोटे-मोटे काम करता था। एक दिन वहाँ मुनीम के हाथों सौ रुपए का एक नोट गायब हो गया। मुनीम को मुझ पर शक हुआ। मैंने अपनी पूरी सफाई दी, लेकिन उन लोगों ने मार-पीटकर मुझे निकाल दिया।
निराशा और याचना
बाबूजी, तबसे कई छोटी मोटी नौकरियाँ की, लेकिन पेट भरने से अधिक कहीं नहीं मिला ! आज सुबह ही काँच की गिलास फूट जाने पर शरबतवाले ने मुझे कई थप्पड़ मारे। मैंने उसके यहाँ काम करना छोड़ दिया। भूख और अपमान से दुखी होकर मैं इस बाग मे आकर बैठा ही था कि आपसे मुलाकात हुई। यही है बाबूजी, मेरी आज तक की जिंदगी। इसमें न कहीं आशा है, न कोई उम्मीद है । सचमुच, इस दुनिया में अनाथों का कोई नहीं है । बाबूजी, क्या आप मुझे कहीं कोई काम दिला सकते हैं? आपके गले नहीं पड़ रहा हूँ, लेकिन हो सकता है कि आपका यह एहसान इस अनाथ के लिए वरदान बन जाए !