Autobiography of Worker Essay in Hindi: आप मेरी आपबीती सुनना चाहते हैं, पर उसमें रखा ही क्या है? मैं तो ठहरा एक साधारण मजदूर ! मेरी जीवनकथा में सुखदुख की दो चार बातों के सिवा आपको और क्या मिलेगा?
एक मजदूर की आत्मकथा हिंदी निबंध – Autobiography of Worker Essay in Hindi
जन्म और बचपन
मेरा जन्म छोटे से गाँव एक गरीब घर में हुआ था। फिर भी मेरा बचपन लाड़ प्यार और सुख मे बीता। लेकिन माँ-बाप के स्नेह की छत्र-छाया मेरे ऊपर अधिक समय तक नहीं रही। फिर मैं अपने एक रिश्तेदार के यहाँ शहर में रहने लगा। उन्होंने मुझे कोहिनूर मिल की एक कैन्टीन में नौकरी दिलवा दी। इस प्रकार दिन पर दिन, महीने पर महीने, वर्ष पर वर्ष बीतने लगे। मिल के मैनेजर साहब की कृपा-दृष्टि से मुझे उसी मिल में नौकरी मिल गई।
मजदूर कैसे बना?
शुरू-शुरू में यह नौकरी मुझे बड़ी मुश्किल लगी। सुबह में मिल का भोंपू बजते ही अपने काम पर हाजिर हो जाना पड़ता था। अगर जरा-सी भी देर हो जाती, तो मिल के दरवाजे बंद हो जाते और दिनभर बेकार घूमना पड़ता। मिल का काम भी बड़ा कठिन और नीरस था। आठ-आठ घंटों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती। मशीन की धड़धड़ाहट और कर्कश आवाज से मेरा सिर चकराने लगता और अंग-अंग ढीला हो जाता। फिर भी क्या करूँ? मजबूरी जो थी।
जीवन की कठिनाइयाँ
हम मजदूर दिन-रात एक करते थे, लेकिन एक जून पूरा खाना भी हमें नसीब नहीं होता था। हमारे लिए मिलमालिकों के दिल में जरा सी भी सहानूभुति न थी। काम में जरा-सी भूल होने पर बुरी तरह से हमें डाँटा जाता था। हम बीमार पड़ते तब तो हमारी दुर्दशा की कोई सीमा ही न रहती थी।
जीवन में परिवर्तन
मैं ऐसी नौकरी से तंग आ जाता था। मेरा मन कभी-कभी सिगरेट, जुए या शराब की ओर आकृष्ट हो जाता, लेकिन उस समय मैं अपने आप पर काबू पाता । इसी अरसे में हमारे मजदूर भाइयों ने अपनी यूनियन बनाई। हमारी माँगें पेश की गईं। हड़ताले हुईं। रोटियों के लाले पड़ने लगे। लेकिन आखिर हमारी विजय हुई। इसके बाद हमारी दशा सुधरने लगी। हमारे लिए जीवन-वीमा, मुफ्त दवाइयाँ, बोनस आदि की व्यवस्था होने लगी। इसी तरह वर्ष पर वर्ष बीतने लगे। अब मैं सामान्य मजदूर से मुकादम बन गया था। इसी बीच मेरी शादी हो गई । हम दोनों पति-पत्नी एक ही मिल में काम करने लगे।
वर्तमान जीवन
अब मैं पचास की देहली पार कर चुका हूँ । अँधेरी झोपड़ी को छोड़कर मैं अच्छे घर में रहने लगा हूँ । मेरे परिवार में मेरी पत्नी और दो बेटे हैं। मेरा बड़ा पुत्र दूसरी मिल में क्लार्क है और छोटा पुत्र कॉलेज में पढ़ता है। मेरे जीवन में अनेक धूप-छाँव के दिन आए । मन में पहले जैसा उत्साह और तन में वह शक्ति नहीं रही, फिर भी इस जीवन से मुझे संतोष है। अच्छा तो अब मैं चला, रही-सही बात फिर कभी।