Earthquake Storm Essay in Hindi: प्रकृति की लीला बड़ी विचित्र है। वह हँसती है, तो सर्वत्र सौंदर्य और उल्लास का वसंत छा जाता है। वह क्रोधित होती है, तो मनुष्य से सबकुछ छीन लेती है। भूकंप प्रकृति का एक ऐसा ही रौद्र रूप है।
भूकंप की संहारलीला हिंदी निबंध – Earthquake Storm Essay in Hindi
अद्भुत परिवर्तन
परिवर्तन के दुखद रूपों में भूकंप का पहला स्थान है। यह इतना आकस्मिक होता है कि बचाने का कोई मौका ही नहीं मिल पाता। देखते ही देखते जिंदगी मौत में बदल जाती हैं । जिंदगी को सारी चहल-पहल पर पूर्णविराम लग जाता है।
जानहानि
भूकंप के तेज झटके विनाश के दूत साबित होते हैं । उनके कारण कच्चे और कमजोर मकान धराशायी हो जाते हैं। उनके मलबे में दबकर हजारों जीवित शरीर लाशों में बदल जाते हैं । कितने ही लोग अपंग हो जाते हैं। कभी कभी पूरे परिवार में केवल एक व्यक्ति बच जाता है। कितने ही परिवारों का पूरा सफाया हो जाता है।
संपत्ति का विनाश
भूकंप में सैकड़ों हजारों मकान गिर जाने से कई समस्याएँ पैदा हो जाती हैं । लोग बेघर हो जाते हैं। उनकी संपत्ति नष्ट हो जाती है। हजारों पशु मर जाते हैं। बचे हुए लोगों को शिविरों में शरण दी जाती है। सरकार और स्वयंसेवी संगठनों के लोग पीड़ित मनुष्यों की सहायता करने पहुँच जाते हैं ।
अन्य दुष्परिणाम
भूकंप से वृक्षों का भी बड़े पैमाने पर विनाश हो जाता है। खेतों में खड़ी फसलें भी नष्ट हो जाती हैं ।कएँ भी सुरक्षित नहीं बचते। उनमें मिट्टी भर जाती है। जमीन में दरारें पड़ जाती हैं और कहीं-कहीं विशाल गढ्ढे हो जाते हैं। सड़कें टूट-फूट जाती हैं, पुल टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं और यातायात ठप हो जाता है। भूकंप भूपृष्ठ पर बड़े-बड़े परिवर्तन ले आता है। उसके कारण नदियों का बहाव-मार्ग बदल जाता है। कुछ पुरानी झीलें मिट्टी से ढंक जाती है और नई झीलें बन जाती हैं। विशाल वन भूमि में दब जाते हैं और कालांतर में वहाँ कोयले की खानें पाई जाती हैं। बड़े-बड़े भव्य शहर शमशान बन जाते हैं। बहुत-सा धन जमीन में दब जाता है । हडप्पा और मोहन-जो-दड़ो जैसे शहर भूकंप को विनाशकता के हो शिकार हुए थे। कभी-कभी भूकंप के कारण ज्वालामुखी पर्वत भी लावा उगलने लगते हैं। उस स्थिति में विनाशलीला अपनी चरमसीमा पर पहुँच जाती है।
मनुष्य की असहायता
सन १९९३ में दक्षिणी महाराष्ट्र के लातूर तथा उस्मानाबाद में भयंकर भूकंप आ गया था। उसको दुखद स्मृतियाँ आज भी बनी हुई हैं । भूकंप के सामने मनुष्य असहाय है। प्रकृति के इस रौद्र रूप का शिकार होने के सिवाय और वह कुछ नहीं कर सकता।