यदि मैं शिक्षक होता हिंदी निबंध Essay on If I were a Teacher in Hindi

Essay on If I were a Teacher in Hindi: आज हमें ऐसे अनेक शिक्षक देखने को मिलते हैं, जो शिक्षा का ‘सच्चा मूल्य नहीं समझते। ऐसे शिक्षकों को देखकर मेरे मन में तरह-तरह के विचार उठते हैं। कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि यदि में शिक्षक होता तो किस प्रकार मैं लागों के आगे एक आदर्श प्रस्तुत करता।

यदि मैं शिक्षक होता हिंदी निबंध Essay on If I were a Teacher in Hindi

यदि मैं शिक्षक होता हिंदी निबंध Essay on If I were a Teacher in Hindi

विद्यार्थियों में विद्या की लगन पैदा करना

यदि में शिक्षक होता तो सबसे पहले अपने विद्यार्थियों में विद्या प्राप्त करने की सच्ची लगन पैदा करता । मैं शिक्षा के प्रति उनकी उदासी को दूर करता । जो शिक्षक विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति दिलचस्पी पैदा नहीं कर सकता उसे शिक्षक ही कैसे कहा जा सकता है? जब शिक्षा में मन लगता है, तो अपने-आप अनेक बुराइयाँ दूर हो जाती है और मन में अच्छे संस्कार पैदा होते हैं।

पढ़ाने का ढंग

मैं ऐसा शिक्षक कभी न बनता जो शिक्षक के पद को केवल अर्थप्राप्ति का साधन मानता है। मैं तो अपने पद का गौरव समझकर अपने छात्रों को खूब अच्छी तरह पढ़ाता । मैं उस अध्यापक की तरह भी न होता, जो केवल पुस्तकों के पन्ने उलट देने को ही पढ़ाना समझता है, वह यह नहीं सोचता कि उसकी बात विद्यार्थी ठीक से समझ रहे हैं या नहीं। जो भी विषय मुझे पढ़ाने के लिए मिलता, उसे मैं बड़ी लगन से पढ़ाता। मैं विद्यालय में ऐसा वातावरण निर्माण करता, जिसमें कोई भी विद्यार्थी अपनी शंका बिना किसी भय और हिचकिचाहट के मेरे सामने रख सके और उसका उचित समाधान प्राप्त कर सके।

विद्यार्थियों के सर्वागी विकास का प्रयत्न

मेरे लिए अपनी कक्षा परिवार की तरह होती । विद्यार्थियों को मैं अपने छोटे भाइयों की तरह मानता। मैं अनुशासन पर विशेष ध्यान देता। पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थियों पर मेरी विशेष दृष्टि रहती। मैं अपनी शक्ति के अनुसार उनकी कमजोरी दूर करने का प्रयत्न करता। प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिए मैं प्रसन्नतापूर्वक अधिक परिश्रम करता। विद्यार्थियों को प्रत्यक्ष ज्ञान प्रदान करने के लिए मैं उन्हें ऐतिहासिक और सुंदर स्थानों की सैर कराने ले जाता। उनके सर्वागीण विकास के लिए मैं उन्हें नाटक, वादविवाद, चित्र, निबंध, खेल-कूद आदि प्रतियोगिताओं में सम्मिलित होने के लिए प्रोत्साहित करता और उनका उचित मागदर्शन करता।

मेरा आदर्श

‘सादा जीवन और उच्च विचार ‘ मेरा मूलमंत्र होता। अपने रहन-सहन और वेशभूषा की सादगी से मैं अपने विद्यार्थियों में सरलता, विनम्रता और सादगी का भाव पैदा करता । मेरे साथी अध्यापकों के प्रति मेरा व्यवहार आदर और स्नेह से पूर्ण होता। मैं सभी प्रकार के प्रलोभनों से मुक्त रहता और ईमानदारी से अपना कर्तव्य पूरा करता। मैं यह कभी न भूलता कि यदि विवेकानंद पैदा करना है, तो रामकृष्ण परमहंस बनना पड़ेगा और छत्रपति शिवाजी जैसे देशोद्धारक उत्पन्न करने के लिए समर्थ रामदास बनना होगा। यह बात मुझे हमेशा याद रहती कि मुझे ऐसे नागरिकों का निर्माण करना है, जिनके कंधों पर देश की उन्नति करने का भार आनेवाला है

उपसंहार

अच्छा हो यदि मैं शिक्षक बनकर अपनी इन अभिलाषाओं को मूर्त रूप दे पाऊँ|

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