Essay On My Favorite Hindi Poet In Hindi: हिंदी काव्य-साहित्य अत्यंत विशाल एवं समृद्ध है। अनेक कवियों ने अपनी सुंदर रचनाओं से हिंदी काव्योद्यान को पुष्पित और पल्लवित किया है। इन कविरत्नों में से किसी एक को अपना ‘प्रिय’ बताना बड़ा मुश्किल है। फिर भी जहाँ तक चुनाव का प्रश्न है, राष्ट्रकवि स्व. मैथिलीशरण गुप्त को मैं अपना प्रिय कवि मानता हूँ।
मेरा प्रिय कवि पर हिंदी में निबंध Essay On My Favorite Hindi Poet In Hindi
साहित्य का रूय
मैथिलीशरण गुप्त भारतीय संस्कृति और भारतीय जनता के सच्चे प्रतिनिधि थे। उनका हृदय देशभक्ति से भरा हुआ था। उनका स्वदेशप्रेम उनके साहित्य में स्पष्ट झलकता है। उनके काव्यों में भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं समाज प्रतिबिंबित हुआ है। गुप्तजी हिंदी भाषा और साहित्य के शिल्पी थे। सरल-सुगम हिंदी उनकी कविता का प्रधान गुण है।
विशेषताएँ
प्राचीनता के अनन्य पुजारी होते हुए भी गुप्तजी नवीनता का स्वागत करने में किसी से पीछे नहीं रहे। भारत भारती’ में उन्होंने भारत की तत्कालीन दशा का जो मार्मिक चित्र खींचा है, उसमें भारतीयों को देश के प्रति जागृत करना ही उनका उद्देश्य था। ‘ साकेत’ में आपने राम का जो रूप प्रस्तुत किया है, वह आपकी राष्ट्रीय भावना के अनुरूप है। इनके अतिरिक्त यशोधरा, जयद्रथ-वध, पंचवटी, नहुष, अनघ आदि गुप्तजी की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। गुप्तजी की सहानुभूति उन पात्रों को भी मिली है, जो कवियों द्वारा प्रायः उपेक्षित रहे हैं और जिनकी महिमा कोई परख नहीं सका। ‘साकेत’ की उर्मिला और यशोधरा’ की यशोधरा भारतीय नारी-जीवन की ऐसी ही करुण एवं उपेक्षित प्रतिमाएँ हैं। वास्तव में गुप्तजी का काव्य लोककल्याण की भावना का प्रेरक है।
व्यक्तित्व
गुप्तजी का व्यक्तित्व भी उनके काव्य के समान ही सरल और मधुर था। प्राणिमात्र उनकी करुणा का पात्र बना हुआ था। उनमें शिशु-सुलभ सरलता, स्नेहपूर्ण आत्मीयता और वैष्णव जनोचित विनम्रता थी । यदि उनका हृदय इतना कोमल न होता, तो मानवजीवन की सूक्ष्म और कोमल भावनाओं के चित्रण में उन्हें सफलता कैसे मिलती?
प्रिय होने का कारण
गुप्तजी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रतिनिधि और लोकप्रिय कवि थे। उन्होंने लगभग ६० वर्ष तक लगातार हिंदी साहित्य को सँवारा-सजाया और अपने अनेक काव्यरत्नों से उसके भंडार को समृद्ध किया। नारी-जीवन की करुणा, देश की दुर्दशा, अस्पृश्यता निवारण, प्रकृति एवं मानवजीवन की भिन्न-भिन्न झाँकियाँ उनकी कविता में मिलती है। गुप्तजी हिंदी के ही नहीं, भारतीय साहित्य के गौरव हैं। उन्होंने देश की जनता के हृदय सिंहासन पर अपना स्थान बना लिया था। भारतीय संस्कृति और मानवता के ऐसे महान गायक और ‘सबके दद्दा ‘ गुप्तजी मेरे प्रिय कवि क्यों न हो?