मेरे विद्यार्थी-जीवन की मधुर स्मृतियाँ पर हिंदी में निबंध My School Life Memories Essay in Hindi

मेरे विद्यार्थी-जीवन की मधुर स्मृतियाँ हिंदी निबंध My School Life Memories Essay in Hindi

हिंदी निबंध

My School Life Memories Essay in Hindi: आज भी विद्यार्थी-जीवन की मधुर स्मृतियाँ मेरे हृदय पर अंकित हैं। उन स्मृतियों की याद आते ही हृदय अनोखे आनंद से भर जाता है और मुँह से अपने आप ये शब्द निकल पड़ते हैं, ‘काश ! वे दिन फिर लौट आते !’

मेरे विद्यार्थी-जीवन की मधुर स्मृतियाँ पर हिंदी में निबंध My School Life Memories Essay in Hindi

मेरे विद्यार्थी-जीवन की मधुर स्मृतियाँ पर हिंदी में निबंध My School Life Memories Essay in Hindi

पाठशाला में प्रवेश

वह दिन आज भी ठीक-ठीक याद है, जब एक हाथ में पट्टी लिए, जेब में पेंसिल डाले और दूसरे हाथ से पिताजी की अंगुली पकड़कर, मैं पहले दिन पाठशाला आया था, तब मेरे हृदय में एक ओर उत्साह तथा दूसरी ओर अनजाना भय था। फिर मेरी पढ़ाई शुरू हो गई। अपनी प्रतिभा और परिश्रम से मैं बहुत जल्दी ही सभी अध्यापकों का प्रिय बन गया।

मधुर घटनाएँ

पढ़ाई में मैं सदा प्रथम रहा। मुझे कई छात्रवृत्तियाँ मिलती रहीं। मैं पाठशाला की क्रिकेट टीम का कॅप्टन भी रहा । जब बल्ला लेकर मैं मैदान में आता तो मेरे नाम की पुकार से सारा वातावरण गूंज उठता था। हमारा दल सदा ही विजयी होता था। नाट्य-मंडल में भी मेरे नाम का बोलबोला था। विद्यार्थियों को मुझसे स्नेह था, अध्यापकों को मुझ पर गर्व था । वार्षिक कवि-संमेलन हो या वक्तृत्व स्पर्धा, सब जगह मेरे नाम की पुकार होती थी। सचमुच, कितने मधुर थे जीवन के वे दिन ! पाठशाला के हस्तलिखित मासिक ‘ज्ञानोदय’ के संपादन से मुझे जो ज्ञान, अनुभव और आनंद प्राप्त हुआ वह अवर्णनीय है। विद्यालय की ओर से आयोजित अजंता-इलौरा, दिल्ली-आग्रा और नैनीताल के प्रवासों की स्मृति आज भी मेरे मन को खुशी से भर देती है।

गुरुजनों का प्रभाव

शालेय जीवन के उन दस वर्षों में मैंने कई अध्यापकों से ज्ञानार्जन किया था, लेकिन उन सब में श्री ब्रह्मदंडे और श्री जाम्बोटकरजी को मैं कभी नहीं भूल सकता। श्री ब्रह्मदंडे मराठी एवं संस्कृत के अध्यापक थे। उनके प्रेमपूर्ण स्वभाव और प्रभावशाली व्यक्तित्व की छाप आज भी मेरे हृदय पर बनी हुई है। श्री जाम्बोटकर गुरुजी हमारे प्रधानाध्यापक थे, जो प्रत्येक विद्यार्थी की पढ़ाई एवं उनके चरित्र-निर्माण का ध्यान रखते है।

मित्रगण

विद्यार्थी जीवन के उन मित्रों को मैं कैसे भूल सकता हूँ, जिनके साथ मैंने वर्षों तक आनंद की घड़ियाँ बिताई हैं। मेरे सभी मित्र बड़े हँसमुख, शरारती और परिश्रमी थे। उनकी मित्रता आज भी वैसी ही बनी हुई है। देखते ही देखते शाला के जीवन का अंतिम दिन भी आ पहुँचा था। वह बिदा-समारोह ! उस दिन गुरुजनों एवं सहपाठियों से विदा होते समय हृदय फटा जा रहा था।

पाठशाला से बिदा

इस प्रकार मेरा विद्यार्थी-जीवन बड़ा ही प्रवृत्तिमय रहा। विद्यार्थी जीवन के वे मधुर दिन स्वप्न की भाँति बीत गए, अब तो उनकी स्मृति ही शेष रह गई है।