Train Accident Essay in Hindi: वैसे तो यह सारा जीवन ही सुख-दुख का अनोखा खेल है, लेकिन कुछ आकस्मित घटनाएँ इस खेल को अत्यंत रोमांचक बना देती हैं। ऐसी ही एक घटना पिछले वर्ष मेरे जीवन में हुई जिसकी स्मृति आज भी रोंगटे खड़े कर देती है।

एक रेल-दुर्घटना हिंदी निबंध Train Accident Essay in Hindi
आकस्मित दुर्घटना का अनुभव
मैं दीपावली की छुट्टियाँ मनाने अपने मामा के यहाँ अहमदाबाद जा रहा था। माता-पिता ने अनेक हिदायतें देकर मुंबई सेंट्रल से मुझे विदा किया। हमारे आरक्षित डिब्बे में पुरुष, स्त्रियाँ, बच्चे सभी तरह के यात्री थे। सबके चेहरे पर यात्रा का आनंद था। कुछ यात्रियों ने बातें छेड़ दी थीं, कुछ यात्री अखबार या पुस्तक पढ़ने में तल्लीन हो गए थे और कुछ ताश का आनंद ले रहे थे। गाड़ी धक-धक्-धक करती पटरी पर दौड़ रही थी। धीरे-धीरे बाहर अँधेरे का साम्राज्य छा रहा था। अचानक एक जोर का धक्का लगा। मैं अपनी जगह से नीचे लुढ़क पड़ा। सारे डिब्बे में यात्री, संदूके, सामान के बंडल, बिस्तरे, पानी की सुराही आदि नीचे गिरने लगे। किसी का सिर बेंच से टकराया, तो कोई फर्श पर आ गिरा। सारे डिब्बे में भूकंप-सा आ गया !
यात्रियों की करुण दशा
गाड़ी एक झटके के साथ रुक गई । रोने-चिल्लाने की आवाजें गहरी शांति को चीरने लगीं। सद्भाग्य से मुझे कोई विशेष चोट नहीं आई थी, अनेक यात्रियों की दशा गंभीर थी। किसी के सिर से रक्त बह रहा था, किसी के हाथ की हड्डी टूट गई थी, तो कोई किसी संदूक के गिरने से घायल हो गया था। स्त्रियाँ और बच्चे बुरी तरह से चिल्ला रहे थे। आसपास का सारा वातावरण चीखों से फटा जा रहा था। मैंने कई यात्रियों को ढाढ़स बँधाया। पल में हुए इस प्रलय ने सबको विस्मित, भयातुर और चिंतित कर दिया था।
दुर्घटना का कारण
पता चला कि पालघर स्टेशन से कुछ पहले ही हमारी गाड़ी पटरी बदलते वक्त सामने से आती हुई तेज गाड़ी से टकरा गई थी। अगले दो डिब्बे तो उस गाड़ी के टकराने से दूर फेंके गए। हमारा डिब्बा बहुत पीछे होने से ही बहुत कुछ बच गया था। पटरी के दोनों तरफ कोलाहल मचा हुआ था। पुलिस और सुरक्षा-दल के लोग संकटग्रस्त यात्रियों की मदद करने आ पहुँचे थे।
यात्रियों की सहायता
सुरक्षित यात्रियों के लिए एक बस आकर रुकी और उन्हें उसमें बैठकर पालघर स्टेशन पर एकत्र होने का आदेश दिया गया। बस में बैठते हुए मैंने देखा कि वहाँ एंब्युलेंसों की कतार लग गई थी और डॉक्टरों का एक दल भी आ पहुँचा था। घायलों की दर्दभरी कराहे वातावरण में फैल रही थीं और लाशों की संख्या बढ़ती जा रही थी।
रोमांचक स्मृति
खैर, मैं तो फिर वहाँ से अगली ट्रेन द्वारा दूसरे दिन अहमदाबाद पहुँच गया। अखबार में दुर्घटना के समाचार पढ़कर मामा-मामी को बड़ी चिंता हो रही थी, पर मुझे भला-चंगा देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। किंतु कई दिनों तक उस भयानक दुर्घटना का सारा दृश्य मेरी आँखों के सामने घूमता रहा।