एक जीर्ण किले की आत्मकथा हिंदी निबंध - Autobiography of Old Fort Essay in Hindi

एक जीर्ण किले की आत्मकथा हिंदी निबंध Autobiography of Old Fort Essay in Hindi

हिंदी निबंध

Autobiography of Old Fort Essay in Hindi: जी हाँ, अब तो मै एक टूटा-फूटा किला हूँ । बीते हुए जमाने की एक यादगार हूँ । मेरे हर एक ईट-पत्थर में इतिहास छिपा हुआ है। मेरी दीवारों में शान-शौकत की दिलचस्प कहानियाँ सोई पड़ी हैं। न जाने कितने पवित्र बलिदान मेरे सूनेपन को जगा रहे हैं । सुन लीजिए मेरा नाम, मैं झाँसी का ऐतिहासिक किला हूँ।

एक जीर्ण किले की आत्मकथा हिंदी निबंध - Autobiography of Old Fort Essay in Hindi

एक जीर्ण किले की आत्मकथा हिंदी निबंध Autobiography of Old Fort Essay in Hindi

उद्भव

मेरा जन्म १६०५ ई. में हुआ था। ओरछा राज्य पर प्राय: बाहरी आक्रमण होते रहते थे, इसलिए राजपरिवार की रक्षा के लिए मुझे राजा वीरसिंहदेव ने बंगरा पहाड़ी पर बनवाया था। क्या शान थी उस समय मेरी ! मेरी ऊँचाई और विशालता राजपूती शान को प्रकट करती थी। राजा वीरसिंहदेव मुझे देखकर उसी तरह खुश होते थे, जैसे बाप अपने युवा बेटे को देखकर होता है।

जीवन के अनुभव

मेरा जीवन धूप-छाँव का अनोखा खेल रहा है । न जाने कितने जमाने मेरी आँखों से गुजर चुके हैं। राजपूत, मुगल, मराठा, अँग्रेज सबकी हुकूमत मैंने देखी है। महाराजा गंगाधरराव के समय मेरी शान-शौकत ही अनूठी थी। उस दिन तो मैं फूला न समाया था, जब लक्ष्मीबाई उनकी नई-नवेली दुल्हन बनकर मेरे आँगन में आई थीं। लेकिन रानी अभी सुहाग के पाँच वर्ष ही बिता पाई थी कि गंगाधरराव का देहांत हो गया। कितनी दुखी थी प्रजा और कितनी दुखी थी रानी ! सचमुच, उस दिन मेरा दिल भी फूट-फूटकर रोया था।

फिर मुझे याद आता है झाँसी पर अंग्रेजों का हमला । अंग्रेजी तोपों की मार से मेरे कँगूरे टूट गए और दीवारें घायल हो गईं । लेकिन मुझे अपने उन घावों पर गर्व है। मुझे उन वीर सिपाहियों पर भी गर्व है, जिन्होंने मेरी रक्षा के लिए अपना लहू बहाया था और हँसते-हँसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। जिसने अपनी वीरता और युद्धकौशल से अंग्रेजी फौज की नाकों में दम कर दिया था, उस मर्दानी रानी लक्ष्मीबाई की याद मेरे रोम-रोम में बसी हुई है । उस दृश्य को मै कभी नहीं भूल सकता, जब रानी छोटे-से दामोदरराव को पीठ पर बाँधकर घोड़े पर सवार हुई थी; शेरनी-सी दुश्मन पर टूट पड़ी थी तथा उन्होंने वीरगति पाई थी। उसके बाद एक लंबे अर्से तक मुझे अंग्रेजों की गुलामी में दिन बिताने पड़े। लेकिन जब भारत आजाद हुआ तो मेरा दिल खुशी से नाच उठा। भारत सरकार ने ‘संरक्षित इमारत’ घोषित कर मेरा सम्मान किया है । इस प्रकार मुझे अपनी तपस्या का फल मुझे मिल गया।

वर्तमान दशा और संतोष

अब तो मैं जीवन के शेष दिन इसी आशा में बिता रहा हूँ कि मैं इस आजाद भारत को और भी खुशहाल देखकर जाऊँ। वैसे जब तक मर्दानी रानी लक्ष्मीबाई अमर है तब तक मैं भी अमर हूँ|

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