Essay on If I had Wings in Hindi: मनुष्य एक कल्पनाशील प्राणी है। उसका मन सदैव कल्पनाओं के रंगबिरंगे तरंगों में विहार करता रहता है। मनुष्य होने के नाते जब-तब मेरे मन में भी कल्पना तरंगें उठती रहती है। कभी-कभी जब मैं अनंत आकाश में पक्षियों को विहार करते देखता हूँ, तो मेरे मन में भी सहज भाव जाग उठता है-काश! यदि मेरे भी पंख होते !
यदि मेरे पंख होते तो हिंदी निबंध Essay on If I had Wings in Hindi
पंख पाकर गगन-विहार
पंख होने पर मैं भी आकाश-विहारी बन जाता। धरती के बंधन से मुक्त होकर मैं भी पक्षियों की तरह आकाश में अपनी इच्छा के अनुसार सैर करता। मैं दूर-दूर तक, ऊँची-ऊँची मनचाही उड़ानें भरता। मैं बहुत निकट से बादलों की शोभा और इंद्रधनुष की रंगावली देखता । हवा के इस महासागर में तैरने का आनंद ही कुछ निराला होता है।
जंगलों की सैर
यदि मेरे पंख होते तो मैं नित्य नए-नए सुंदर, विशाल, सघन जंगलों की सैर करता रहता । न शेर का डर होता, न बाघ या चीते का भय । खाने-पीने की चिंता ही न रहती । वृक्षों पर बैठकर मनचाहे मधुर फलों का स्वाद लेता।
आजादी से घूमना-फिरना
पंख होने से मुझे साइकिल, मोटर, स्कूटर आदि वाहनों के लिए इच्छा न होती । रेल के टिकट के लिए कतार में भी न खड़ा होना पड़ता । जब जी में आता तब फौरन अपने मित्रों और संबंधियों से मिल आता । न सड़क या पटरी की चिंता होती, न नदियों या पर्वतों की। कोई भी मेरा मार्ग न रोक पाता।
किसी से झगड़ा होने पर मुझे पिटने का भी भय न होता । मकर संक्रांति के अवसर पर बिना
जेब हल्की किए मेरे पास पतंगों का ढेर लग जाता । माँ कोई सामन मँगाती तो मैं झट से उड़कर ले आता। कहीं कोई दुर्घटना होती तो मैं तुरंत वहाँ पहुँचकर दुर्घटनाग्रस्त लोगों की सहायता करता और वहाँ का सारा वृत्तांत ले आता । अखबारों की मुझे गरज ही न रहती।
उपसंहार – पंखरहित दशा
सचमुच, जब मैं बस की लंबी लाइन में खड़ा होता हूँ या किसी टैक्सी का इंतजार करता हूँ, तो यही सोचता हूँ- काश ! मेरे पंख होते, फिर मुझे गुप्तजी की ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं-
“किंतु बिना पंखों के विचार सब रीते हैं।
हाय, पक्षियों से भी मनुष्य गये बीते हैं।”